चमत्कारी लाजवर्त रत्न के फायदे- benefits of miraculous Lajvart gemstone in Hindi
लाजवर्त, जिसे अंग्रेजी में लैपिस लाजुली (Lapis Lazuli) के नाम से जाना जाता है, एक विशेष उपरत्न है जो शनि ग्रह के रत्न नीलम का उपरत्न माना जाता है। ज्योतिष में इसे आकाश के तारे के रूप में देखा जाता है। इस रत्न का गहरा नीला रंग और पीले धब्बे, जिन्हें पाइराइट कहा जाता है, इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
लाजवर्त रत्न का उपयोग ग्रहों की शांति के लिए किया जाता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है, जिसका प्रमाण विभिन्न पुरानी सभ्यताओं में मिलता है। यह न केवल भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण रहा है, बल्कि सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी इसके उपयोग के संकेत पाए गए हैं। इसके अद्भुत रंग और चमक के कारण यह रत्न अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में लाजवर्त को उपरत्नों और उनके चमत्कारी प्रभावों के लिए जाना जाता है। इसकी विशेषताएँ और उपयोग इसे एक महत्वपूर्ण रत्न बनाते हैं, जो न केवल सौंदर्य के लिए, बल्कि आध्यात्मिक और ज्योतिषीय लाभों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, लाजवर्त का धारण करना व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
लाजवर्त के गुण और लाभ
लाजवर्त के अद्वितीय गुणों में ग्रहों की शक्तियों को बढ़ाने की असाधारण क्षमता शामिल है। यह उपरत्न जातक की उदासी को समाप्त करने में सहायक होता है और बुखार की रोकथाम में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह रत्न नकारात्मक भावनाओं को दूर करने में मदद करता है, गले से संबंधित समस्याओं को ठीक करता है, और मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी लाभकारी माना जाता है। यह व्यक्ति की सहनशक्ति को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस उपरत्न को धारण करने से जातक की मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है। मस्तिष्क में शांति का अनुभव होता है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्पष्टता बनी रहती है। इसके परिणामस्वरूप, जातक के पुरुषार्थ में सुधार होता है। यह उपरत्न विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं, क्योंकि यह उनकी क्षमताओं को बढ़ाता है और उन्हें अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
लाजवर्त का प्रभाव जातक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है। इस प्रकार, यह उपरत्न एक समग्र विकास के लिए आवश्यक तत्व के रूप में कार्य करता है, जो जातक को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
लाजवर्त रत्न पहनने के लाभों में यह शामिल है कि जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि ग्रह शुभ भावों का स्वामी होते हुए भी कमजोर स्थिति में हैं, वे इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं। इसे पहनने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक है, ताकि किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
लाजवर्त रत्न हृदय को शक्ति प्रदान करता है और प्रदर रोग में भी लाभकारी सिद्ध होता है। यह रक्त की शुद्धि में सहायक होता है और विभिन्न परेशानियों को दूर करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह घबराहट, दुख, रक्त दोष और मानसिक रोगों के उपचार में भी प्रभावी होता है।
लाजवर्त रत्न के धारण करने से जातक को मानसिक शांति मिलती है, जिसके कारण इसका उपयोग हीलिंग चिकित्सा में भी किया जाता है। यह रत्न नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सहायक होता है और इसकी ऊर्जा तथा प्रकाश के कारण इसके आस-पास का वातावरण शुभदायक बनता है। इसे स्वतंत्रता और उन्मुक्तता का अनुभव कराने वाला भी माना जाता है।
इस रत्न के उपयोग से जातक की एकाग्रता में सुधार होता है, जिससे वह चीजों को बेहतर तरीके से याद रख पाता है। यह मनोविज्ञान से संबंधित कार्यों में भी सहायक सिद्ध होता है। विशेष रूप से, जो छात्र अध्ययन में कमजोर हैं, उनके लिए इस रत्न का उपयोग उनके अध्ययन कक्ष में करना लाभकारी होता है। यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन है, और कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
रचनात्मकता की आवश्यकता वाले कार्यों में इस रत्न का उपयोग करने से अद्भुत लाभ मिलता है। यदि आप पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत हैं या किसी संस्थान में सलाहकार के रूप में कार्य कर रहे हैं, तो यह रत्न आपके लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है। यह रत्न जातक के आलस्य को दूर करने में भी सहायक होता है, जिससे व्यक्ति अपने कार्य के प्रति अधिक सजग और सक्रिय हो जाता है।
इस रत्न के प्रभाव से व्यक्ति का ढुलमुल रवैया समाप्त होता है, और वह अपने कार्यों में अधिक समर्पित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, बल्कि वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सफल होता है। इस प्रकार, यह रत्न न केवल अध्ययन और कार्यक्षेत्र में, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है।
लाजवर्त धारण करने के नियम
लाजवर्त रत्न को धारण करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है। रत्न शास्त्र के अनुसार, इसे शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर पहनना चाहिए। इसके अतिरिक्त, लाजवर्त को माला और ब्रेसलेट के रूप में भी धारण किया जा सकता है। इसे दायें हाथ की मध्यमा उंगली में पहनना शुभ माना जाता है।
इस रत्न को धारण करने से पूर्व, इसे सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए। इसके बाद, इसे नीले कपड़े पर रखकर शनि के मंत्र का 1100 बार जप करना आवश्यक है। मंत्र इस प्रकार है: ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ।।
मंत्र जप के बाद, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित कर इसे कपड़े से पोंछकर सूर्यास्त के बाद पहनना चाहिए। इसके साथ ही, शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान किसी गरीब या जरूरतमंद को देकर आना भी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, लाजवर्त रत्न को धारण करने की प्रक्रिया पूरी होती है।
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