केतु ग्रह की सम्पूर्ण जानकारी जानें दुर्ग भिलाई ज्योतिष लक्ष्मी नारायण से
दुर्ग भिलाई ज्योतिष लक्ष्मी नारायण के अनुसार, केतु ग्रह का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष में इसे एक महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है और इसे "छाया ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। केतु, जो जैमिनी गोत्र का शूद्र है, कुश द्वीप का स्वामी है। इसका रंग धुएँ के समान है, जबकि इसके वस्त्र इस रंग से भिन्न होते हैं। केतु की आकृति विकृत मुँह वाली होती है और इसका वाहन गिद्ध है। इसके हाथों में वर मुद्रा और गदा होती है, जबकि इसके देवता चित्रगुप्त और प्रमुख देवता ब्रह्मा माने जाते हैं।
अगर आपकी कुंडली में केतु अशुभ होकर बैठा है। तो यह आपके जीवन को कष्टों और परेशानियों से भर सकता है। ज्योतिष शास्त्र में केतु को पाप ग्रह भी माना जाता है और जिस भी व्यक्ति के कुंडली में केतु का दोष होता है उसके जीवन में परेशानियां भर जाती हैं. केतु के अशुभ प्रभाव से इंसान गलत रास्ते अपनाता है, उसके सभी कार्यों में बाधा आने लगती है। यहाँ तक की उसे जीवनभर आर्थिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में केतु का दोष होने से कालसर्प का दोष भी बनता है।
केतु ग्रह
केतु ग्रह का संबंध आध्यात्मिकता, रहस्यों और अवशोषण से है। यह व्यक्ति को आंतरिक ज्ञान की खोज में मार्गदर्शन करता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की सोच में गहराई और रहस्य का अनुभव होता है। हालांकि, केतु को कालेपन और क्रूरता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन यह कभी-कभी शुभ फल भी प्रदान कर सकता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी आ सकते हैं, जो उसकी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।
इस प्रकार, केतु ग्रह का अध्ययन और समझना व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण हो सकता है। यह न केवल व्यक्ति की आंतरिक दुनिया को उजागर करता है, बल्कि उसे अपने जीवन के गहरे रहस्यों को समझने में भी मदद करता है। ज्योतिष के माध्यम से केतु के प्रभावों को जानकर व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और सकारात्मकता ला सकता है। इस ग्रह की गहराई में छिपे ज्ञान को समझना, व्यक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव हो सकता है।
केतु ग्रह का प्रभाव
केतु एक ऐसा ग्रह है जो हाथ-पैर की बीमारियों, भूख, प्यास और त्वचा संबंधी रोगों का कारण बन सकता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक तनाव और चिंता का सामना कर सकता है। इसके अतिरिक्त, केतु लकड़ी, भय और अभाव का भी प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार, यह ग्रह एक विरोधाभासी स्वभाव प्रस्तुत करता है, जिसमें इसकी क्रूरता के बावजूद कभी-कभी सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं।
केतु की स्थिति विभिन्न राशियों में अलग-अलग प्रभाव उत्पन्न करती है। शुभ स्थानों में 2, 9, 10 और 11 के स्थान शामिल होते हैं, जो व्यक्ति के लिए लाभकारी माने जाते हैं। वहीं, अशुभ स्थानों में 5, 6 और 12 शामिल होते हैं, जो व्यक्ति के लिए चुनौतियों का कारण बन सकते हैं। इस प्रकार, केतु की कुंडली में स्थिति व्यक्ति की संभावनाओं और कठिनाइयों को निर्धारित करती है।
केतु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी स्थिति से न केवल स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, बल्कि यह मानसिक स्थिति और जीवन के अन्य पहलुओं पर भी असर डालता है। इस ग्रह की गहन समझ से व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और सुधार की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।
केतु का रत्न लहसुनियां धारण करने से लाभ
दुर्ग भिलाई ज्योतिष
लक्ष्मी नारायण के अनुसार केतु का रत्न लहसुनिया धारण करने से व्यक्ति को
कई लाभ प्राप्त होते हैं। यदि किसी की कुंडली में केतु की अशुभता है, तो
लहसुनिया पहनने से न केवल केतु की नकारात्मकता समाप्त होती है, बल्कि यह
ग्रह भी मजबूत होता है। इससे व्यक्ति को कार्य, संतान सुख और वैवाहिक जीवन
से संबंधित समस्याओं से राहत मिलती है।
लहसुनिया रत्न के प्रभाव से
व्यक्ति को अचानक होने वाली दुर्घटनाओं से सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा,
यह वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य को बढ़ावा देता है, जिससे पति-पत्नी
के बीच संबंधों में मधुरता आती है। परिवार में सुख-शांति का माहौल बना
रहता है, और व्यक्ति को अपने कार्यों में आर्थिक लाभ भी प्राप्त होता है।
इस
रत्न के धारण से मानसिक शांति की अनुभूति होती है, जिससे व्यक्ति का
स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है। इस प्रकार, लहसुनिया रत्न के लाभों के
कारण यह एक महत्वपूर्ण उपाय है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक
परिवर्तन लाने में सहायक होता है।
केतु ग्रह के देवता कौन है
हिंदू धर्म में केतु ग्रह के लिए भगवान
श्री गणेश को प्रमुख देवता माना जाता है। श्री गणेश को केतु का कारक मानने
के कारण, जो व्यक्ति केतु के दोषों से प्रभावित है, उसे अपने जीवन में चल
रहे संघर्षों से राहत पाने के लिए श्री गणेश की आराधना करनी चाहिए। यदि कोई
व्यक्ति गंभीर बीमारी, पारिवारिक अशांति या आर्थिक संकट का सामना कर रहा
है, तो उसे गणेश जी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
विशेष
रूप से बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से केतु के दुष्प्रभावों से
मुक्ति मिल सकती है। यह दिन गणेश जी की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना
जाता है। श्रद्धालुओं को इस दिन विशेष ध्यान और भक्ति के साथ पूजा करनी
चाहिए, जिससे उन्हें मानसिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति हो सके।
केतु
ग्रह के प्रभाव से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए श्री गणेश की
उपासना एक प्रभावी उपाय है। भक्तों को चाहिए कि वे नियमित रूप से गणेश जी
की पूजा करें और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करें, ताकि वे अपने जीवन
में सुख-शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकें। इस प्रकार, भगवान श्री गणेश की
कृपा से केतु के दोषों से मुक्ति संभव है।
केतु मोक्ष का कारक क्यों है ?
केतु का मुख्य कार्य मोक्ष प्रदान करना है। यदि किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं, तो उसे अच्छा मोक्ष प्राप्त होता है, जबकि बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप उसे खराब मोक्ष का सामना करना पड़ता है। परमात्मा ने प्राणियों के मोक्ष का दायित्व केतु को सौंपा है। केतु का बार-बार कष्ट देना और प्राणियों को आगे बढ़ने से रोकना उसके स्वभाव का हिस्सा है। इसके अलावा, दुर्घटनाओं का कारण भी केतु को माना जाता है, और यह शल्य क्रिया तथा भूत-प्रेत की बाधाओं का कारक भी है।
केतु को मोक्ष का कारक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उन लोगों को चेतावनी देता है, जो संसार के भौतिक सुखों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। एक निश्चित समय पर, केतु उन्हें यह समझाने का कार्य करता है कि उन्होंने पर्याप्त सांसारिक सुख भोग लिए हैं। इसके बाद, वह उन्हें प्रेरित करता है कि वे परमात्मा की ओर ध्यान केंद्रित करें और उनके चरणों में अपने सिर को रखकर अपने जीवन में शांति प्राप्त करने का प्रयास करें।
इस प्रकार, केतु का प्रभाव जीवों के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह न केवल मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करता है, बल्कि आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक विकास के लिए भी प्रेरणा प्रदान करता है। केतु की भूमिका को समझना और उसके संकेतों को पहचानना, व्यक्ति के जीवन में संतुलन और शांति स्थापित करने में सहायक हो सकता है।
आपने अक्सर देखा होगा कि जो व्यक्ति अपने सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं और आत्मशांति के लिए समय नहीं निकाल पाते, वे अपने अंतिम समय में एकांत में रहना पसंद करते हैं। यह केतु के प्रभाव का परिणाम है, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन की शांति की खोज में तीर्थ स्थलों की ओर यात्रा करने लगता है या किसी संत या गुरु के पास जाकर मोक्ष की प्राप्ति की कोशिश करता है।
इस प्रकार, केतु का प्रभाव न केवल व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि यह उन्हें अपने अंतर्मन की गहराइयों में जाकर आत्मा की शांति की खोज करने के लिए भी प्रेरित करता है। इस प्रक्रिया में, व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होने का प्रयास करता है।
जब कोई प्राणी जीवन में सदमार्ग का अनुसरण करता है और दूसरों के हित को ध्यान में रखकर कार्य करता है, तो उसे अंततः किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत, जब वह केवल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों को कष्ट पहुँचाता है और यह नहीं सोचता कि उसके कार्यों से अन्य लोगों को कितनी परेशानी हो सकती है, तो वह अंततः विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करता है। ऐसे में, उसके द्वारा किए गए कार्यों से प्रभावित लोग उसे प्रताड़ित कर सकते हैं।
यदि व्यक्ति अपने पिछले कर्मों के अनुसार घोर पाप की ओर बढ़ता है, तो उसे उसके कर्मों के फलस्वरूप नकारात्मक कार्यों में संलग्न होना पड़ सकता है, जैसे कि कसाई का काम। इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में उसके कर्मों के अनुसार ही प्रकट होता है, जो उसके अच्छे या बुरे कार्यों का परिणाम होता है।
केतु ग्रह जिस ग्रह के साथ होता है, उसी के अनुसार अपने फल प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, जब केतु शनि या मंगल के साथ होता है, तो वह व्यक्ति को दो मार्गों पर ले जा सकता है। एक ओर, वह व्यक्ति को सर्जन बना सकता है, जो दूसरों के दुखों को दूर करने का कार्य करता है। दूसरी ओर, वह व्यक्ति को रक्षा सेवा में भेजकर लोगों की सुरक्षा का कार्य भी करवा सकता है।
मंगल और केतु का संयोजन कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है, जैसे कि कैंसर, टीबी, और एड्स। इसके अतिरिक्त, रक्त में संक्रमण भी उत्पन्न हो सकता है, जिससे रोगाणु रक्त में फैल जाते हैं और विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का निर्माण करते हैं।
जब केतु त्रिक भावों में स्थित होता है, तो यह संकेत करता है कि ईश्वर ने मानवता को सुख भोगने के लिए नहीं, बल्कि कर्ज, दुश्मनी, बीमारी, अपमान, मृत्यु, जान के जोखिम और पाप कर्मों से बचाने के लिए इस धरती पर भेजा है। केतु की गतिविधियों के परिणामस्वरूप, जब दुर्घटनाएँ होती हैं, तो व्यक्ति देख लेने के बावजूद भी टकराव से बच नहीं पाता, वह घटना को रोकने में असमर्थ होता है।
जब केतु छठे भाव में होता है और ग्रहों से शक्ति प्राप्त करता है, तो मंत्री, मुख्यमंत्री, और प्रधानमंत्री जैसे उच्च पदों की प्राप्ति में भी सहायक होता है। इसके प्रभाव से शरीर और संसार में उपस्थित दोषों को शांत करने का प्रयास किया जाता है।
केतु की पूजा से लाभ
केतु की पूजा करने से व्यक्ति को कई महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं। सबसे पहले, यह आर्थिक समृद्धि की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है, जिससे व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, केतु की आराधना से आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया भी शुरू होती है, जो व्यक्ति को गहरे ज्ञान और समझ की ओर ले जाती है।
दूसरे, नियमित रूप से केतु की पूजा करने से स्वास्थ्य में सुधार की संभावना बढ़ जाती है। यह पूजा व्यक्ति को मानसिक शांति और आंतरिक संतोष प्रदान करती है, जिससे जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। जब व्यक्ति केतु की आराधना करता है, तो यह लक्ष्मी के आगमन के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करता है, जिससे उसकी इच्छाएँ पूरी होने लगती हैं।
अंत में, केतु ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है। इसकी पूजा से न केवल धन और स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी संभव होती है। इस प्रकार, केतु की पूजा एक महत्वपूर्ण साधना है, जो व्यक्ति के जीवन को समृद्ध और संतुलित बनाने में सहायक होती है।
केतु मन्त्र
केतु के लिए एक महत्वपूर्ण मंत्र है: "ह्रीं केतवे नमः"। इस मंत्र का जाप करने से केतु की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद मिलती है। यह विशेष रूप से मानसिक शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यक माना जाता है।
इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। यह न केवल मानसिक तनाव को कम करता है, बल्कि आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है। केतु की ऊर्जा को सही दिशा में लगाने के लिए यह मंत्र अत्यंत प्रभावी है।
अतः, "ह्रीं केतवे नमः" का जाप करने से व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकता है। यह मंत्र साधक को आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार, केतु के प्रभाव को समझते हुए इस मंत्र का जाप करना लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
केतु का ग्रहों के अनुसार फल
केतु का प्रभाव विभिन्न ग्रहों के साथ मिलकर अलग-अलग परिणाम उत्पन्न करता है। जब केतु गुरु के साथ होता है, तो यह व्यक्ति को मन्दिर का पुजारी बना सकता है, इसी प्रकार, मंगल के प्रभाव में केतु व्यक्ति को राज्य के अधिकारी की स्थिति पर पहुंचा सकता है।
जब शनि के साथ केतु का संबंध होता है, तो यह व्यक्ति को चपरासी की भूमिका में डाल सकता है। यदि शनि और शुक्र का साथ हो, तो केतु व्यक्ति को कुली या रिक्शा चालक बना सकता है। इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति की पेशेवर यात्रा को विभिन्न दिशाओं में मोड़ सकता है।
मिथुन राशि में केतु का प्रभाव व्यक्ति को डाकिया या कोरियर के रूप में कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इसके अलावा, जब राहु को मंगल का बल मिलता है, तो केतु व्यक्ति को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञ बना सकता है। इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति के करियर और पेशेवर जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जन्म पत्री में भाव अनुसार केतु के फल
जन्म पत्री के विभिन्न भावों में केतु की विशेषताएँ भिन्न-भिन्न रूप से प्रकट होती हैं। पहले भाव में, यह मन की अशांति को बढ़ाता है, मानसिक अस्थिरता को जन्म देता है, और भाई-बहनों के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त, यह शरीर में वायु के प्रभाव को भी बढ़ा देता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
दूसरे भाव में, केतु पिता के धन के संबंध में बाधाएँ उत्पन्न करता है, जिससे भौतिक संसाधनों की ओर ध्यान भटकता है या निकटवर्ती भौतिक साधनों को नष्ट करने की प्रवृत्ति विकसित करता है। इस प्रकार, यह व्यक्ति के आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है और मानसिक तनाव का कारण बनता है।
तीसरे भाव में, केतु मन में चंचलता लाता है और लोगों के साथ चलने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। यह हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता है, लेकिन साथ ही भूत-प्रेतों के प्रति आकर्षण भी उत्पन्न करता है।
चौथे भाव में, यह माता-पिता के सुख को प्रभावित करता है, उत्साह में कमी लाता है, और मानसिक स्तर पर नकारात्मकता का संचार करता है, जिससे संतोष की कमी का अनुभव होता है।
पंचम भाव व्यक्ति को शक्तिशाली बनाता है, विशेषकर महिलाओं की कुंडली में संतान के लिए चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता उत्पन्न करता है, और संतति की संख्या को सीमित करता है। इसके अतिरिक्त, यह भाई-बहनों के साथ संघर्ष और कठिनाइयों का कारण भी बन सकता है।
छठे भाव में यह व्यक्ति को संतोष प्रदान करता है, कर्ज, शत्रुता और स्वास्थ्य समस्याओं में कमी लाता है। सामान्यतः, पेट की बीमारियों के अलावा अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ नहीं होती हैं, लेकिन वृद्धावस्था में यह जोड़ों के दर्द का कारण बन सकता है।
सप्तम भाव मानसिक अशांति उत्पन्न करता है और निरर्थक चिंताओं को जन्म देता है, जो जीवन साथी और संतान के लिए दुख का कारण बनता है। इसके साथ ही, यह जल से संबंधित भय को भी बढ़ावा देता है।
अष्टम भाव शरीर की ऊर्जा को कम करता है, जीवन साथी के साथ संघर्ष उत्पन्न करता है, और धन की कमी का अनुभव कराता है, जिससे धन अक्सर मृत्यु के कारणों में व्यय होता है।
नवम भाव में केतु का प्रभाव दूसरों के लिए भाग्य का संचार करता है, भाई-बंधुओं की सेवा की प्रेरणा देता है और विभिन्न धर्मों की ओर अग्रसर होने का संकेत प्रदान करता है। यह भाव व्यक्ति को सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध बनाता है।
दसवें भाव में केतु की उपस्थिति भाग्यशाली होते हुए भी कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है। यह व्यक्ति को पिता के सुख से दूर कर सकता है, घमंड को जन्म देता है और जीवनसाथी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, विशेषकर रीढ़ की हड्डी की बीमारियों, का सामना करने के लिए मजबूर करता है।
ग्यारहवें भाव में केतु व्यक्ति को धन और सुख की प्राप्ति कराता है, बड़े भाई के साथ सामंजस्य स्थापित करता है और सद्गुणों के विकास में सहायक होता है।
वहीं, बारहवें भाव में यह व्यक्ति को उच्च स्थान पर पहुँचाने, तेजस्वी और बुद्धिमान बनाने में सहायक होता है, लेकिन इसके साथ ही संदेह की भावना भी उत्पन्न कर सकता है।
केतु ग्रह से संबंधित व्यवसाय
केतु ग्रह से जुड़े व्यवसायों में तांबे का व्यापार, टेलीफोन सेवाएं, कोरियर सेवाएं, ठेकेदारी, कृषि संबंधित कार्य, औषधियों का व्यापार, नेटवर्किंग, मोबाइल टावर से संबंधित कार्य, लकड़ी के लट्ठों का व्यापार, सीमेंट के खंभों का निर्माण, लोहे के खंभे बनाना, और सरिया, रॉड, पाइप आदि का व्यापार शामिल हैं। ये सभी व्यवसाय केतु के प्रभाव के अंतर्गत आते हैं और इनका संचालन विशेष ध्यान और योजना के साथ किया जाना चाहिए।
केतु का प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ मिलकर विभिन्न परिणाम उत्पन्न करता है। जब केतु गुरु के साथ होता है, तो यह व्यक्ति को धार्मिक कार्यों में संलग्न कर सकता है, जैसे कि मन्दिर का पुजारी बनाना। इसी प्रकार, जब केतु मंगल के साथ होता है, तो यह व्यक्ति को सरकारी अधिकारी की स्थिति तक पहुंचा सकता है, जिससे उसकी सामाजिक स्थिति में सुधार होता है।
इस प्रकार, केतु ग्रह का प्रभाव व्यवसायिक और व्यक्तिगत जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके साथ ही, यह ग्रह विभिन्न ग्रहों के साथ मिलकर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। इसलिए, केतु के प्रभाव को समझना और उसके अनुसार कार्य करना आवश्यक है ताकि व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
जब शनि केतु के साथ होता है, तो यह व्यक्ति को एक सहायक या चपरासी की भूमिका में डाल सकता है। यदि शनि और शुक्र का संबंध होता है, तो केतु व्यक्ति को कुली या रिक्शा चालक बनने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति की पेशेवर यात्रा को विभिन्न दिशाओं में मोड़ने की क्षमता रखता है।
मिथुन राशि में केतु का प्रभाव व्यक्ति को डाकिया या कोरियर के रूप में कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, जब राहु को मंगल का सहयोग मिलता है, तो केतु व्यक्ति को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति के करियर में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
इस प्रकार, केतु का प्रभाव व्यक्ति के पेशेवर जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल करियर के विकल्पों को प्रभावित करता है, बल्कि व्यक्ति की कार्यशैली और पेशेवर पहचान को भी आकार देता है। इसीलिए, ज्योतिष में केतु के प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है ताकि व्यक्ति अपने करियर के मार्ग को सही दिशा में निर्धारित कर सके।
केतु को शांत करने के उपाय
केतु दोष से मुक्ति पाने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं। हर शनिवार को गरीबों को दान देना अत्यंत लाभकारी होता है। विशेष रूप से, मंदिर के बाहर बैठे जरूरतमंदों को कंबल, छाता, लोहा, उड़द और गर्म कपड़े दान करने से केतु की नकारात्मकता कम होती है। यह न केवल दान करने वाले के लिए पुण्य का कार्य है, बल्कि इससे केतु दोष से राहत भी मिलती है।
केतु दोष से उत्पन्न समस्याओं से बचने के लिए लहसुनिया रत्न धारण करना एक प्रभावी उपाय है। इसके अलावा, यदि आप केतु को शीघ्र शांत करना चाहते हैं, तो प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाना और काले तथा सफेद तिल को बहते जल में प्रवाहित करना भी लाभकारी है। ये सरल उपाय केतु की अशुभता को कम करने में सहायक होते हैं।
केतु के दोषों को दूर करने के लिए ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम: मंत्र का जाप करना भी फायदेमंद रहता है। इसे 5, 11 या 18 माला जाप करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इसके साथ ही, 18 शनिवार का व्रत रखना और हर शनिवार पीपल के पेड़ की जड़ में पानी अर्पित करना, साथ ही घी का दिया जलाना भी आवश्यक है। इन उपायों को अपनाने से निश्चित रूप से लाभ होगा।
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